Tuesday, March 2, 2010

कैकेयी की वेदना

रामायण हिन्दू धर्म का एक पवित्र ग्रन्थ है । जिसमे राम का चरित्र सर्वोत्तम है , जो करुणा ,त्याग , सहिष्णुता , प्रेम , धर्म , भात्रुप्रेम आदि की मूर्ति है । राम के चरित्र को निखारने में जितनी राम की व्यक्तिगत विशेषता का योगदान है उतना ही कैकेयी का योगदान है ।
कैकेयी अयोध्या नरेश राजा दशरथ की तीन रानियों में सबसे छोटी थी जो उन्हें अत्यंत प्रिय थी । देवासुर संग्राम में राजा दशरथ के प्राणों की रक्षा कर उनके द्वारा दिए गए दो वरदानो की कृपापात्र बनी । जिसका सदुपयोग उन्होंने अपने प्रिय पुत्र श्री राम को चौदह वर्ष तक वनवासी जीवन व्यतित कर लंका नरेश रावण का वध कर इस धरा को उसके पापाचार से मुक्त कराकर सही मायने में राम राज्य की स्थापना करना । इस पुनीत कार्य के लिए इतिहास उन्हें आज भी घृणा की नजर से देखता है , उनके द्वारा किये गए उपकार के बदले में लोग आज भी उनकी निंदा करते है । अबला नारी की श्रेणी में सीता , उर्मिला , यशोधरा , अहिल्या आदि का वर्णन होता है ,लेकिन कैकेयी के त्याग ,बलिदान को देख सही मायने में ये पंक्ति सार्थक लगती है -''अबला तेरी यही कहानी ,आंचल में है दूध आँखों में है पानी '' ।
: किसी भी सधवा नारी के लिए उसका सौभाग्य उसका पति होता है और कैकेयी को पता था कि यदि राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास और अपने पुत्र के लिए राजगद्दी मांगकर वह अपने पति के प्राणों को संकट में डाल स्वयं अपने आप को विधवा बना रही है क्योंकि राम उन्हें अपने प्राणों से भी प्रिय है और वह राम के बगैर जी न सकेंगे । यह जानते हुए भी कैकेयी ने जनकल्याण हेतु विधवा होना स्वीकार किया । जिसके लिए पति के द्वारा शापित भी हुई ।
: कैकेयी को अपने चारो पुत्रो में सबसे अधिक स्नेह राम पर था यहाँ तक कि राम के बगैर वह जीवन कि कल्पना भी नहीं कर सकती थी फिर भी प्रजा कार्य हेतु उन्होंने राम को वन में भेज राम का असह्य वियोग सहा ।
: कैकेयी अपने सगे पुत्र साधू भरत को अच्छी तरह से जानती थी कि वह अपने बड़े भाई की जगह कभी भी राजा पद का स्वीकार नहीं करेगा , और इस कार्य के लिए उसे कभी माफ़ भी नहीं करेगा । अपने कलेजे पर पत्थर रख कर कैकेयी ने वरदान माँगा जिसके परिणाम स्वरूप भरत ने कभी भी कैकेये को माँ नहीं कहा । इससे बड़ी दुख की बात किसी माँ के लिए क्या हो सकती है ।
: समाज में निन्दित हुई लोगो के तिरस्कार का भोग भी बनी
फिर भी उनके इन त्याग और बलिदान को देख कर मेरा मस्तक श्रध्दासे झुक जाता है ।