Wednesday, August 18, 2010

न पक्ष न विपक्ष बस अपना एक ही लक्ष्य -मनी मनी

संसद जो भारतीय लोकतंत्र की गरिमा है ,लेकिन जब कभी भूले से किसी चेनल पर उसका दर्शन होता है तो संसद संसद न लगकर किसी मच्छी बाजार या सब्जीमंडी अधिक लगता है , क्योंकि नेता अपनी बात कहने में या प्रजा की समस्या को बताने में नहीं लगाते उतना जोर जवाब न सुनने या सत्ता पक्ष का विरोध करने में लगाते हैं । ऐसा लगता है कि संसद में कौन कितने जोर से बोलता है इसकी प्रतियोगिता चल रही हो । इतना ही नहीं हद तो तब हो जाती है जब विरोध करने में वे प्रजा के हित को ही भूल जाते हैं । तब उनकी हालत देख उस फिल्म की याद आ जाती है जिसमे नेता नदी पर बांध बना पानी से बिजली पैदा करने का विरोध करते हुआ कहता है कि यदि पानी में से बिजली निकाल ली गई तो पानी किसी कम का नहीं रह जाएगा ।
इसके विपरीत जब भी कभी नेताओं को अपनी पगार या भत्ता या कोई और सुविधा प्राप्त करने की बात संसद में लाइ जाती है तो संसद के सारे मंत्री अपने पक्ष विपक्ष को भूल सभी एकमत हो अपनी बात मनवा लेते है ।
काश हमारे नेता इसी तरह गरीबी , बेरोजगारी , भुखमरी , भ्रष्टाचार , कालेधन की वापसी , देश में ख़रीदे जाने वाले सैन्य संसाधन के कमीशन के खुलासे जैसे प्राण प्रश्नों के बारे एक मत हो जाये तो ये नेता भारत के भगवान हो जाये .

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