चाहे कोई तीर चलाये ,चाहे चलाये गोली ;
हम तो अपने ढंग से मित्रो इस वर्ष मानेगे होली ;
जाति पांति का भूत भगाकर हम साथ रहेंगे बनाके टोली,
अमीरी गरीबी की दीवार भेदकर, सभी बनेंगे हमजोली ।
भूखे नंगो का दरद बंटा, भरेंगे मानवता की झोली ।
त्याग आपसी मतभेदों को , बोलेंगे 'मधुर' प्रेम की बोली।
मिल-जुलकर सब साथ रहेंगे , जैसे दमन से चोली ।
दरिद्र नारायण की सेवा कर , हमने मैली चादर धोली ।
प्रेम का पाठ सिखाकर सबको , हमने मन की आँखे खोली।
धुप-दीप नैवेध्य त्याग कर, फेंक दिया अक्षत रोली ।
दीन हीन को गले लगाकर, प्रभुवर की पूजा करली ।
काया को रंगने के बदले , दिल की चादर हमने रंगली ।
रोतों को हंसी बाँटकर ,'मधुर' प्यार की मदिरा पी ली ।
चाहे कोई तीर चलावे , चाहे चलावे गोली ।
हम तो अपने ढंग से मित्रो , इस वर्ष मनाएंगे होली ।
Friday, February 26, 2010
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