Friday, August 20, 2010

क्षमा शोभती उस भुजंग को ,

आज दिनांक २२/८/२०१० की सुबह जब टी,वी पर समाचार देख बरबस ही ये काव्य पंक्तियाँ याद आ गई जब सुना की हमारे देश के मीठी जुबान से पुरे देश को मरहम लगाने वाले प्रधान मंत्री मनमोहन सिंग ने पाकिस्तान में आए भयंकर बाढ़ से दुखी हो अच्छे पडोसी का फर्ज अदा करने की तमन्ना जागी । तो उन्होंने पहले पाक के प्रधानमंत्री गिलानी से मदद की पेशकस की , पेशकस मंजूर होने के बाद उन्होंने देश वासियों के सामने मदद की जानकारी दी ।
शायद उन्हें अपने देश में दी जाने वाली मदद की वापसी और फिर स्वीकृति का कांड याद आ गया हो उन्हें अपने में मोदी दिखाई दिया हो , जैसे नितीश ने कोसी त्रासदी का पैसा वापस कर दिया था वैसे ही कही गिलानी भी उनकी मदद को वापस न कर दे नहीं तो जग हंसाई न हो इस लिए उन्होंने एक दिन पहले ही फ़ोन पर मदद की स्वीकृति लेने के बाद ही बात जाहिर की । चलो अंत भला तो सब भला ।
लेकिन दुःख तो इस बात का है कि जब बात हो ही रही थी तो खैर ख्वाह पूछते हुए लगे हांथो जम्बू के पुन्च्छ में लगातार दो दिनों से पाक कि तरफ से हो रही भयंकर गोलीबारी के बारे में भी पूछ लेते कि यदि गोलियों , गोले और रोकेट की कमी हो तो वो भी थोडा बहुत ये भी भेज दू । जिससे हमें ही नुकसान पहुचे आज हमारा देश भी बाढ़ , सुखा , महंगाई , शिक्षित बेरोजगारी , उग्रवाद , नक्सलवाद ,कोमंवेल्थ गेम्स एवं सहयोगी पक्ष के दबाव , अनाज के भण्डारण की कमियों आदि से जूझ रहा है । ये तो मनमोहन सिंग जैसे कुशल अर्थशास्त्री हैं जो पिछले कई वर्षों से प्रजा के मुह में वादों की मीठी लोलीपोप थमा देते है की अगले वर्ष तक महंगाई जरुर कम हो जाएगी । जिसमे थोडा बहुत सहयोग विपक्ष का भी होता है , विपक्ष एक मुद्दे को लेकर बहस छेदताहै की उसी समय भानुमती के पिटारे से एक दूसरा मुद्दा सामने आ जाता है जिससे पहला मुद्दा दब कर रह जाता है । और हमें न खुदा ही मिलता है न ही मिसाले सनम मिल पाटा है । ऐसे में भारत जैसे विकासशील देश की इस तरह की दयनीय स्थिति देख कर ये पंक्तियाँ हमारे देश पर बेनामी नहीं लगाती । ..........................................घर का बच्चा घंटी चाते ।
क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो ,
उसको क्या जो दंतहीन विषरहित विनीत सरल हो ।

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